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Friday, July 30, 2010

साँची कविता

बंग भंग को कर दो संग,
भारत -पाक भी एक ही अंग
हिन्दू कुश से हिंद महासागर,
'
आजाद हिंद' का एक ही गागर
भाषाओ का भेद मिटा दो,
प्रेम की भाषा सबको पढ़ा दो
हिन्दू - मुस्लिम -सिख-ईसाई,
ये सब भेद हमने है बनाई
ईशवर ने इन्सान बनाया ,
दया -रहम ही धर्म बताया
सच्चाई पर चलते जाना
आसान हो जाये अल्लाह को पाना
जेहन में जेहाद मचा दो,
इर्ष्या द्वेष को मार भगा दो
दिल साफ कर बन जाओ नेक,
महसूस करोगे 'सबका मालिक एक'।

- ग़ुलाम कुन्दनम,
सिटिज़न ऑफ़ 'आजाद हिंद देश'
(भारत + पाकिस्तान + बंगलादेश)

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