मैं नकाब और घूँघट दोनों को महिलायों के गुलामी की निसानी मानता हूँ , पर अंग प्रदर्शन को भी असंस्कृतिक तथा भौड़ापन मानता हूँ. लडकियों और महिलायों को लगता है की वे सर पर आँचल रखेंगी, दुप्पट्टा प्रयोग करेंगी, फुल बाह वाले तथा ढीले कपड़े पहनेंगी तो वे गवार और कम पढ़ी- लिखी दिखेंगी. यह सोंच उनकी छोटी बुद्धि का दोतक है। हमारी महामहिम श्री मति प्रतिभा पाटिल फुल ब्लाउज पहनती हैं, वो भी आगे पीछे से कटे - फटे नहीं होते, सर पर आँचल रखती हैं। तो क्या वो हमरी तथाकथित आधुनिक युवा पीढ़ी से कम पढ़ी लिखी हैं, क्या वो निरी गवार है। बिना सिर पैर के रीति रेवाजो को न मानना सही है , पर अपनी संस्कृति, शालीनता, शिस्टता को छोड़ देना अनुचित। अंग प्रदर्शन से सुन्दर दिखने के बजाये अपने मन से तथा अपने कार्यों को सुन्दर बनाने से भी दुनिया को अपने कदमो में झुकाया जा सकता हैं। ऐसा कई लड़कियों तथा महिलाओं ने समय समय पर कर दिखाया भी है। मैं अपनी माताओं बहनों को सलाह दूंगा की वे अंग प्रदर्शन से बचें तथा देश के लिए, समाज के लिए, अपने कैरिअर के लिए कुछ खास और बढ़िया कर के दिखाएँ बड़े बड़े लोग सैलूट मारेंगे। अंग प्रदर्शन से किसी को ललचाना, लुभाना, या आकर्षित करना छडिक हो सकता है तथा वो आकर्षण संभव है सम्मानजनक भी न हो पर अपने कार्यों से अपने व्यक्तित्त्व से अगर किसी को आकर्षित किया जाये तो वो आकर्षण सम्मानजनक भी होगा और टिकाऊ भी होगा।
ग़ुलाम कुन्दनम,
सिटिज़न ऑफ़ आजाद हिंद देश (पाकिस्तान + भारत+ बंगलादेश )
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