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Saturday, March 26, 2011

मेरे उपवास एवं आवेदन पर बिहार के मुख्यमंत्री, बिहार मानवाधिकार आयोग और अधिकारीयों की निष्क्रियता.

Ghulam Kundanam

मैं दिनांक 15-03-2011 को वन प्रमंडल, साहाबाद प्रमंडल, सासाराम के समक्ष उपवास पर रहा. मेरी निम्न मांगें थी:-

१. कैमूर पहाड़ी पर अवैध खनन को रोकने एवंम वृक्षारोपण के कार्य के लिए स्थानीय BPL परिवारों को अनुबंधित किया जाये. रखरखाव के लिए भी उन्हें मासिक भत्ता दिया जाये. वन उत्पादों में से भी उन्हें लाभ का हिस्सा दिया जाये एवम उनके लिए शिक्षा - स्वास्थ योजनायें चलाई जाएँ.

२. खनन क्षेत्र एवं क्रशर उद्योग में पर्यावरण संरक्षण तथा प्रदुषण नियंत्रण के सारे उपाय सुनिश्चित करने को कहा जाये, ताकि क्षेत्र के वनों, बागों और वृक्षों को बचाया जा सके, अन्यथा उन विभागों के खिलाफ वन विभाग क़ानूनी कार्यवाही करे .

3. खनन विभाग के खिलाफ पहाड़ी की सीधी कटाई कराने के कारण मुकदमा वन विभाग करे तथा उसे सीढ़ीनुमा बनाने के लिए मुआवजा की मांग करे.

सुबह १० बजे के बाद वन प्रमंडल पदाधिकारी आये और उनहोंने मुझे कार्यालय बुलाया. उन्होंने कहा की प्रदुषण का काम बिहार राज्य प्रदुषण नियंत्रण बोर्ड देखता है, इसलिए आपकी बात प्रदुषण बोर्ड को लिख दी जाएगी. वन लगाने के लिए कैमूर पहाड़ी क्षेत्र की भूमि BPL परिवारों को आबंटित करने के सम्बन्ध में उनहोंने कहा की ऐसा कोई कानून नहीं है. मैंने कहा की ऐसा प्रस्ताव केंद्र सरकार के वन मंत्रालय को भेजा जाये तो वे नहीं कहते रहे पर बहुत आग्रह करने पर उन्होंने हामी भर दी. उनहोंने कहा की खनन विभाग पर भी मुकदमा किये गए हैं.

मैं बाहर अपने उपवास स्थल पर आया तो कुछ देर बाद कई कर्मचारी मेरे पास आये और कहने लगे की अपना सारा सामान समेटिये और जाइए, साहब ने कहा है. मैंने कहा की मुझसे तो उन्होंने नहीं कहा. इस पर उन लोगों ने खुद ही जबरन मेरे बैनर और स्लोगन वाली तख्तियां उतार दी. गाँधी जी का जो चित्र आप देख रहे हैं उसे मैंने दीवार में लगे तार पे लटकाया था. उसे भी उतार कर निचे उल्टा रख दिया गया. गाँधी जी ने जिनको सत्ता सौपी है, उनके प्रति कुछ अपवाद को छोड़ सरकारी बाबुओं के दिल में ऐसी ही क़द्र है.

मैंने उनलोगों से कहा भी की कम से कम गाँधी जी का तो सम्मान करिये. गाँधी जी के सिधान्तों के अनुरूप मैंने निर्भीकता पूर्वक कह दिया की मैं एक दिन के उपवास का संकल्प लेकर आया हूँ उसे पूरा करूँगा, आप चाहे तो मुझे गिरफ्तार करा सकते हैं. सासाराम क्षेत्र के रेंजर काफी दबाव बना रहे थे. कुछ देर खड़े रहने के बाद सभी कर्मचारी वापस कार्यालय चले गए.

थोड़ी देर बाद DFO साहब ने फिर बुलवाया. कहने लगे आप एक दिन धरना दीजिये या दस दिन कोई फर्क नहीं पड़ता. कुछ धमकाने वाली बात भी बोले. उनहोंने कहा की वन विभाग की ४ एकड़ भूमि पर ही अवैध खनन का कार्य हो रहा है, हमारे पास दुसरे हजारो एकड़ भूमि है, मैं उसे देखूंगा न की ४ एकड़ भूमि के पीछे पड़ा रहूँगा. कुछ सोंचकर शांत होते हुए चपरासी से मुझे पानी पिलाने को कहा, जिसे मैंने शाम से पहले न पिने का निर्णय विनम्रता पूर्वक सुना कर मना कर दिया. उन्होंने शाम तक मुझे उपवास पर बैठने की अनुमति दे दी.

वापस अपने जगह जाने लगा तो एक कर्मचारी ने कहा की आपका सामान ऑफिस में है ले लीजिये. यानि मैं DFO साहब से बात कर रहा था और उधर उनके कर्मचारी मेरा सामान समेट रहे थे. सामन लेकर वापस अपने जगह आया तो पाया की सामान में मेरा बैनर और स्लोगन वाली तख्तियां नहीं हैं. पुन: पूछा तो बताया गया की सासाराम क्षेत्र के अधिकारी अपने आवास ले गए, मांगने पर कहा गया की शाम को मिलेगा, अभी आप ऐसे ही बैठिये. मैं और बापू (चित्र रूप में) बिना बैनर पुन: बैठ गए. ARSS का जो बैनर और तख्तियां वन कर्मचारियों द्वारा उतारी गयी थी उसका चित्र मेरे २ अक्टूबर के नोट में है जिसका लिंक है http://www.facebook.com/photo.php?fbid=174618895916133&set=a.104976256213731.3807.100001040727520

उपरोक्त मांगों और खनन तथा पत्थर उद्योग से से जुड़े मजदूरों और स्थानीय लोगों और जीवों के मानवाधिकार की रक्षा के लिए मैंने बिहार राज्य मानवाधिकार आयोग और मुख्यमंत्री कार्यालय को आवेदन २८-०९-२०१० को अपने हाथ से दिया था. वही आवेदन जिला पदाधिकारी को देकर मैंने २ अक्टूबर को समाहरणालय, रोहतास, सासाराम के गेट के पास उपवास भी रखा था. पर आज तक मेरे आवेदन पर न तो किसी विभाग ने जवाब दिया न ही कोई कारवाही आगे बढ़ाई गयी.

नेता और अधिकारियों की इस निष्क्रियता का कारण भी भ्रस्टाचार ही है, जब मानवाधिकार आयोग जैसी संस्था निष्क्रिय है तो अन्य विभागों से आपेक्षा करना उंचित नहीं है. इसलिए नेता और अधिकारीयों में भी गलत काम और निष्क्रियता से भय उत्पन करने के लिए जन लोकपाल बिल का पास कराना बिलकुल जरूरी हो गया है. इसके लिए सरकार पर दबाव बनाने के लिए ५ अप्रैल से अन्ना हजारे साहब के आह्वान पर सभी भारतीयों से आग्रह है की आमरण अनशन और गिरफ्तारियां देने के लिए आगे आयें.

अपने देश में व्यक्तिगत भ्रष्टाचार ही नहीं संगठित भ्रस्ताचार भी है. इसका एक छोटा सा उदहारण वन विभाग के कर्मचारियों ने दिखा दिया. संगठित भ्रस्टाचार का भय media को भी है या मीडिया को भी संगठित भ्रष्टाचार Manage करना जानता है. इसका उदहारण भी देखने को मिला. एक कम विस्तार क्षमता वाले अखबार प्रभात खबर के संवादाता को mange या प्रभावित नहीं किया जा सका जिसने हिम्मत दिखाते हुए मेरी मांगों सहित समाचार छापा. हलाकि वन कर्मियों के व्यवहार को छपने से उनहोंने भी परहेज किया. पर यहाँ की दो बड़े अख़बारों के दफ्तर को पूरी सूचना होने और उनके फोटोग्राफ़र द्वारा फोटो दिए जाने के बावजूद समाचार में जगह तक नहीं दी गयी. भ्रष्टाचार का media और न्यायपालिका तक को प्रभावित करना देश के लिए काफी दुखद है.

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