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A citizen of a new big country Azad Hind Desh (India + Pakistan + Bangladesh).

Thursday, September 30, 2010

अदालत ने मेरे सपने के अपने हिस्से का फैसला सुना दिया

अदालत ने मेरे सपने के अपने हिस्से का फैसला सुना दिया, बाकि हिस्से का फैसला हमें खुद करना है। मैं नए दोस्तों के लिए अयोध्या समाधान पर लिखी दोनों कवितायेँ पुन: प्रस्तुत करता हूँ।

अदालत का फैसला आया?

मैंने सपने में देखा,
अदालत का फैसला आया।
हर कोई खुश था,
हर किसी को भाया।

न किसी की हार हुई,
न किसी की जीत,
न ही कोई दुखी था,
न ही कोई भयभीत।

इंसानियत की जीत हुई,
नफरत भयभीत हुई।
हमें छोड़ गयी सरारत,
जीता तो सिर्फ भारत।

कोई नहीं मायूस हुआ,
सभी के दिल खिले,
जो जहाँ पर है,
एक-दुसरे से गले मिले।

अयोध्या की ब्रम्ह बेला,
सपने में ही देखा मेला।
मस्जिद से आजान आई,
मानों, मेरे रूह में जान आई।

मस्जिद से निकलते ही,
मिला राम का चरणामृत,
ऐसा सौभाग्य किसे मिला,
आत्मा हो गई तृप्त।

मंदिर से निकलकर,
गुरूद्वारे पे खड़ा था।
मंत्र मुग्ध होकर घंटो,
माथा टेके पड़ा था।

सपने में ही नींद खुली तो ,
पहुँच चूका था गिरजाघर में,
अजीब सी शांति दिखी हमें,
क्रूश पे झूलते प्रभु इशु में ।

बुद्धं शरणम् गच्छामि,
मैंने भी भर दी हामी,
मिट गई मेरी हर हरारत,
सामने खड़ा था बौध इमारत.

बगल में जैन मंदिर दिखा,
चींटी को भी बचाना सिखा।
यहाँ सब संभल कर जाते है,
मानवता में किट-पतंग भी आते है।

दीन-दयालु पारसी भाई,
चले हमको साथ लेवाई,
आग पानी संच्चा हर पल,
पहुँच गया मैं फायर टेम्पल

जाने कितनी ईमारत,
देखि होती मैंने,
कमबख्त रात गुजर गयी,
नींद खुली सैनें सैनें

धुप निकल आई थी,
फिर भी मैं सो गया
फिर से उसी सुनहले,
सपनों में खो गया

"!" कोई जगाये मुझे,
आप करिए जो सूझे
अगर ये हकीकत में आई,
मुझे जगा लेना भाई

क्या सुन्दर, दृश्य होगा।

इंतजार क्यों करें,
की अदालत फैसला सुनाये,
राजनितिक लाभ के लिए,
नेता उसे भुनाए

हम मिल कर ढुंढ़ लें,
समाधान,
तभी कह सकेंगे,
मेरा भारत महान

सूरज तो अपना धर्म निभाएगा,
रोज की तरह,
उस दिन भी,
जरूर आयेगा

यह बताने की तुम भी,
अपना धर्म निभाओ,
मंदिर-मस्जिद ही नहीं,
सभी धर्मो की,
ईमारत बनाओ

दुनिया देख कर दंग रह जाएगी,
हज, तीर्थ करने,
अयोध्या ही आएगी

वहां के वासी,
मालामाल हो जायेंगे,
-ओंकार-अल्लाह-गोड़,
को एक साथ पाएंगे

अमन के साथ-साथ,
आमदनी भी होगी,
मिलकर संग खायेंगे,
मुल्ला और योगी

किसी का कुछ भी,
नहीं तो खोगा,
क्या सुन्दर,
दृश्य होगा

- ग़ुलाम कुन्दनम.

Friday, September 24, 2010

अदालत का फैसला आया.?

मैंने सपने में देखा,
अदालत का फैसला आया।
हर कोई खुश था,
हर किसी को भाया।

न किसी की हार हुई,
न किसी की जीत,
न ही कोई दुखी था,
न ही कोई भयभीत।

इंसानियत की जीत हुई,
नफरत भयभीत हुई।
हमें छोड़ गयी सरारत,
जीता तो सिर्फ भारत।

कोई नहीं मायूस हुआ,
सभी के दिल खिले,
जो जहाँ पर है,
एक-दुसरे से गले मिले।

अयोध्या की ब्रम्ह बेला,
सपने में ही देखा मेला।
मस्जिद से आजान आई,
मानों, मेरे रूह में जान आई।

मस्जिद से निकलते ही,
मिला राम का चरणामृत,
ऐसा सौभाग्य किसे मिला,
आत्मा हो गई तृप्त।

मंदिर से निकलकर,
गुरूद्वारे पे खड़ा था।
मंत्र मुग्ध होकर घंटो,
माथा टेके पड़ा था।

सपने में ही नींद खुली तो ,
पहुँच चूका था गिरजाघर में,
अजीब सी शांति दिखी हमें,
क्रूश पे झूलते प्रभु इशु में ।

बुद्धं शरणम् गच्छामि,
मैंने भी भर दी हामी,
मिट गई मेरी हर हरारत,
सामने खड़ा था बौध इमारत.

बगल में जैन मंदिर दिखा,
चींटी को भी बचाना सिखा।
यहाँ सब संभल कर जाते है,
मानवता में किट-पतंग भी आते है।

दीन-दयालु पारसी भाई,
चले हमको साथ लेवाई,
आग पानी संच्चा हर पल,
पहुँच गया मैं फायर टेम्पल

जाने कितनी ईमारत,
देखि होती मैंने,
कमबख्त रात गुजर गयी,
नींद खुली सैनें सैनें

धुप निकल आई थी,
फिर भी मैं सो गया
फिर से उसी सुनहले,
सपनों में खो गया

"!" कोई जगाये मुझे,
आप करिए जो सूझे
अगर ये हकीकत में आई,
मुझे जगा लेना भाई


- ग़ुलाम कुन्दनम.


















Tuesday, September 21, 2010

क्या सुन्दर, दृश्य होगा।

इंतजार क्यों करें,
की अदालत फैसला सुनाये,
राजनितिक लाभ के लिए,
नेता उसे भुनाए

हम मिल कर ढुंढ़ लें,
समाधान,
तभी कह सकेंगे,
मेरा भारत महान

सूरज तो अपना धर्म निभाएगा,
रोज की तरह,
उस दिन भी,
जरूर आयेगा

यह बताने की तुम भी,
अपना धर्म निभाओ,
मंदिर-मस्जिद ही नहीं,
सभी धर्मो की,
ईमारत बनाओ

दुनिया देख कर दंग रह जाएगी,
हज, तीर्थ करने,
अयोध्या ही आएगी

वहां के वासी,
मालामाल हो जायेंगे,
-ओंकार-अल्लाह-गोड़,
को एक साथ पाएंगे

अमन के साथ-साथ,
आमदनी भी होगी,
मिलकर संग खायेंगे,
मुल्ला और योगी

किसी का कुछ भी,
नहीं तो खोगा,
क्या सुन्दर,
दृश्य होगा

intjar kyo karen,
ki adalat faisla sunaye,
rajnitik labh ke liye,
neta use bhunaye।
ham mil kar dhundh len,
samadhan,
tabhi kah sakenge,
mera bharat mahan।
Suraj to apna dharm nibhayega,
roj ki tarah,
us din bhi,
jaroor ayega।
yah batane ki tum bhi,
apna dharm nibhao,
mandir-maszid hi nahi,
sabhi dharmo ki,
imarat banao।
duniya dekh kar dang rah jayegi,
haj, tirth karne,
ayodhya hi aayegi।
wahan ke wasi,
malamal ho jayenge,
OM-ONKAR-ALLAH-God,
ko ek sath payenge।
aman ke sath-sath,
aamdani bhi hogi,
milkar sang khayenge,
mulla aur yogi।
kisi ka kuchh bhi,
nahi to khoga,
kya sundar,
drisy hoga।

- GK,
Citizen of Azad Hind Desh.

Monday, September 20, 2010

A letter mailed to the Chief Justice of Supreme Court of India.

To: supremecourt@nic.in

Subject : Most Argent (Ram Janmbhumi - Babri Masjid Case).

सेवा में,

मुख्य न्यायधीश महोदय,

सर्वोच्य न्यायालय ,

नई दिल्ली।

विषय :- राम जनम भूमि - बाबरी मस्जिद विवाद के हल हेतु समाधान एवं आग्रह

महाशय,

राम जनम भूमि - बाबरी मस्जिद का समाधान तथ्यों एवं दस्तावेजों के आधार पर निकालना उचित नहीं है सभी दस्तावेजों एवं दलीलों से ऊपर मानवता, समाज और देश की अस्मिता को बचाने की दलील है जमीन किसी की हो, सरकार को राष्ट्र हित में उसे अधिग्रहित कर लेना चाहिए सड़क बनाने के लिए, रेल लाइन बिछाने के लिए किसी की निजी जमीन सरकार ले सकती है तो राष्ट्र हित में विवादित भूभाग क्यों नहीं सरकार को भूमि अधिग्रहित करने का आदेश दिया जाना चाहिए उक्त भूमि पर सभी धर्मों का पूजा स्थल बनाया जाना चाहिए ऐसा करने से भेदभाव भी मिटेगा, भाईचारे को बढ़ावा मिलेगा, अयोध्या एक पर्यटक स्थल हो जायेगा, विश्व के कोने कोने से सभी धर्मों के अनुयायी तीर्थाटन एवं देशाटन के लिए आयेंगे, वहाँ के निवासियों के लिए रोजगार के नए नए अवसर खुलेंगे. मतभेद हो इसके लिए पुरे परिक्षेत्र में लाउडस्पीकर के प्रयोग पर पूरी तरह प्रतिबन्ध लगा दिया जाना चाहिएसभी धर्म स्थलों के पुजारियों का चयन सरकार द्वारा किया जाना चाहिए, जो सभी धर्मों का सामान रूप से आदर करते हों, सर्व धर्म समभाव में विश्वास रखते हों।

थोड़े देर के लिए मुख्य न्यायधीश का अहम् छोड़ कर स्वयं मेरी तरफ से वकील के रूप में या किसी अन्य सरकारी वकील के मार्फ़त मेरा पक्ष एवं दलील न्यायालय में २४ तारिक को फैसले से पहले रखवाने की व्यवस्था करवाने का कस्ट करें या मुझे भी अपने देश हित में अपनी बात रखने का हक़ है, मुझे अपना पक्ष रखने की अनुमति प्रदान करें।

मैं अंत में भावपूर्ण अपील करता हूँ की आप हस्तछेप करें और मेरी दलील रखवाएंइस सम्बन्ध में मैंने एक कविता अपने फेसबुक के नोट में लिखी है जो निम्नवत है :-

इंतजार क्यों करें,

की अदालत फैसला सुनाये,

राजनितिक लाभ के लिए,

नेता उसे भुनाए।

हम मिल कर ढुंढ़ लें,

समाधान,

तभी कह सकेंगे,

मेरा भारत महान।

सूरज तो अपना,

धर्म निभाएगा,

रोज की तरह,

उस दिन भी,

जरूर आयेगा।

यह बताने की तुम भी,

अपना धर्म निभाओ,

मंदिर-मस्जिद ही नहीं,

सभी धर्मो की,

ईमारत बनाओ।

दुनिया देख कर,

दंग रह जाएगी,

हज, तीर्थ करने,

अयोध्या ही आएगी।

वहां के वासी,

मालामाल हो जायेंगे,

ॐ-ओंकार-अल्लाह-गोड़,

को एक साथ पाएंगे।

अमन के साथ-साथ,

आमदनी भी होगी,

मिलकर संग खायेंगे,

मुल्ला और योगी।

किसी का कुछ भी,

नहीं तो खोगा,

क्या सुन्दर,

दृश्य होगा।

http://www.facebook.com/note.php?note_id=161565423859324

मेरा ब्लॉग है :- ghulamkundanam.blogspot.com

E mail :- ghulam.kundanam@gmail.com

Mobile no- +91 (send in original mail)

आपका विश्वासी ,

ग़ुलाम कुन्दनम

माताओं बहनों के कपड़े.

मैं नकाब और घूँघट दोनों को महिलायों के गुलामी की निसानी मानता हूँ , पर अंग प्रदर्शन को भी असंस्कृतिक तथा भौड़ापन मानता हूँ. लडकियों और महिलायों को लगता है की वे सर पर आँचल रखेंगी, दुप्पट्टा प्रयोग करेंगी, फुल बाह वाले तथा ढीले कपड़े पहनेंगी तो वे गवार और कम पढ़ी- लिखी दिखेंगी. यह सोंच उनकी छोटी बुद्धि का दोतक है। हमारी महामहिम श्री मति प्रतिभा पाटिल फुल ब्लाउज पहनती हैं, वो भी आगे पीछे से कटे - फटे नहीं होते, सर पर आँचल रखती हैं। तो क्या वो हमरी तथाकथित आधुनिक युवा पीढ़ी से कम पढ़ी लिखी हैं, क्या वो निरी गवार है। बिना सिर पैर के रीति रेवाजो को न मानना सही है , पर अपनी संस्कृति, शालीनता, शिस्टता को छोड़ देना अनुचित। अंग प्रदर्शन से सुन्दर दिखने के बजाये अपने मन से तथा अपने कार्यों को सुन्दर बनाने से भी दुनिया को अपने कदमो में झुकाया जा सकता हैं। ऐसा कई लड़कियों तथा महिलाओं ने समय समय पर कर दिखाया भी है। मैं अपनी माताओं बहनों को सलाह दूंगा की वे अंग प्रदर्शन से बचें तथा देश के लिए, समाज के लिए, अपने कैरिअर के लिए कुछ खास और बढ़िया कर के दिखाएँ बड़े बड़े लोग सैलूट मारेंगे। अंग प्रदर्शन से किसी को ललचाना, लुभाना, या आकर्षित करना छडिक हो सकता है तथा वो आकर्षण संभव है सम्मानजनक भी न हो पर अपने कार्यों से अपने व्यक्तित्त्व से अगर किसी को आकर्षित किया जाये तो वो आकर्षण सम्मानजनक भी होगा और टिकाऊ भी होगा।

ग़ुलाम कुन्दनम,

सिटिज़न ऑफ़ आजाद हिंद देश (पाकिस्तान + भारत+ बंगलादेश )


Friday, September 17, 2010

क्या गाँधी जी दलित विरोधी थे?

प्रिय दीपा बहन,
नमस्ते!
स्व-कर्म और स्व-धर्म सीखना सरल होता है, इसे गाँधी जी ही नहीं , संत बिनोबा भावे ने भी कहा था. यदि कोई अतिरिक्त योग्यता रखता हो और अन्य क्षेत्र में अभिरुचि रखता हो तो उसे नए क्षेत्र में जाने से कौन रोक सकता है. काम कोई भी बुरा नहीं होता जबतक उससे किसी दुसरे इन्सान को या प्राणी को दुःख न पहुंचे. किसी काम को छोटा और किसी काम को बड़ा नहीं कहा जा सकता, सबका अपना-अपना महत्त्व है, मन अच्छा बुरा होता है, सोंच अच्छी बुरी होती है। किसी भी बात का अर्थ, अर्थ करने वाले व्यक्ति की भावना, ज्ञान, और रूचि पर निर्भर करता है. एक उदहारण पेश है –

मेरे क्षेत्र में एक संत हुआ करते थे। उनसे एक व्यक्ति ने कहा तुलसीदास महिला और दलित विरोधी थे , उन्होंने महिलाओं को प्रताड़ना के योग्य कहा है - "सुद्र गवार ढोल पशु नारी, ये सब ताडन के अधिकारी।" शायद आप भी ऐसा ही इत्तफाक रखती हैं। सामान्य आदमी यही अर्थ समझता है। परन्तु तुलसीदास ने किस भाव से यह बात लिखी थी कौन जनता है? हमारे संत महोदय का जबाब था - [ताड़न का अर्थ प्रताड़ना नहीं होता है। जैसे हम किसी बात को अनुमान से, बुद्धि से, समझ जाते हैं तो कहते हैं "मैं तो बात पहले ही ताड़ गया था यानि समझ गया था। " इसी प्रकार तुलसीदास का कहना था की ढोल, गवार, सुद्र, पशु तथा नारी से समझ बुझ कर व्यव्हार करना चाहिए। तत्कालीन व्यवस्ता में सुद्र, गवार, और नारी पशु के समान शिक्षित नहीं थे। ढोल को समझ बुझ कर बजाने से सुर ताल में स्वर निकलते हैं जबकि पीटने से तो बेसुरा शोर हो जायेगा।]

मेरी एक गाय थी. वह दूध निकालते समय बिदक जाती थी, डराने, डंडा दिखने, मारने से कुछ समय खड़ी रहती फिर वैसे ही करने लगती. दूध भी कम देती तथा गिरने की भी सम्भावना बनी रहती, परन्तु कोई उसे सहलाता रहता तो आराम से ज्यादा दूध देती थी। तुलसीदास ने ऐसे ही व्यवहार के बारे में सुझाया है।

हमारे समाज के कुछ सियासत और लालच में फसे मौलाना लोग कहते है कि "दुसरे मजहब के लोगों को भगाना, उनको मारना, उनपर जबरन इस्लामिक कानून थोपना, उन्हें इस्लाम कबूल करने के लिए मजबूर करना ये सब जेहाद का हिस्सा है। लेकिन मैं कहता हूँ कि इन्सान के अन्दर में खुदा और सैतान दोनों रहते हैं। अल्लाह ने अपने अन्दर के सैतान से लड़ने को जेहाद कहा है। अर्थात "जेहन कि बुराइयों से लड़ना ही जेहाद है।" अब आप ही अपनी अंतरात्मा/ खुदाई से पूछिये किसकी परिभाषा सही हैं, जेहाद के नाम पर निर्दोषों कि हत्या करनेवालों की या मेरी।

अब मूल विषय पर आते हैं वर्ण व्यवस्था खुले सोंच, कर्म में विश्वास रखने वालों के लिए सही है तथा जातिगत संकृण विचार रखने वालों के लिए गलत। कर्म के अनुसार चलें तो गाँधी, बिनोबा, मदर टेरेसा आदि सभी समाज सेवी, कुष्ट रोगियों की सेवा करने वाले शुद्र हैं क्योंकि उनका कर्म और धर्म सेवा था, उनके साथ काम करने वालो को उनके परिवार के लोगो को उक्त कार्य को आजीविका के रूप में भी अपनाना सरल था क्योंकि वे यह सब बचपन से देखते और करते आ रहे थे। उन्हें उस काम को कही सिखने या पढ़ने नहीं जाना था। वर्ण व्यवस्था में किसी को रोजगार के लिए मारे-मारे नहीं फिरना था। आज हम २५ वर्षों - ३० वर्षों तक पढाई करते हैं उसके बाद भी निर्णय करना मुस्किल होता है कहाँ कौन सी नौकरी करे , कौन सा व्यापार करे। शिक्षा के अनुरूप नौकरी या व्यवसाय न मिला तो नए काम को सिखने में फिर से समय, धन और श्रम खर्च करना पड़ता है ; अनेक तरह की समस्याएं आती हैं जो आज के समाज में आम बात हो गयी है। वर्ण व्यवस्था में अपना रोजगार ढूढने या सिखने कही जाना नहीं था उसमें बचपन से ही महारत हासिल थी। अत: वर्ण व्यवस्था गलत नहीं है किसी काम को छोटा देखने का हमारा नजरिया गलत है। उसे जातिगत रूढीवाद के निगाह से देखना गलत है। वर्ण व्यवस्था में ऐसा नहीं है की कोई योग्यता होने पर दुसरे वर्ण में नहीं जा सकता, यदि कोई दुसरे वर्ण के अनुसार कार्य करने लगता है तो वह कर्म के अनुसार नए वर्ण का हो जाता है।

जहाँ तक बंद और हड़ताल की बात है, आजादी के लिए, अंग्रेजों के शोषण से मुक्ति के लिए बंद या हड़ताल करना उंचित था, हलाकि बंद या हड़ताल से आम लोगों को परेशानी होती है, आर्थिक नुकशान भी होता है, पर आजादी मिलने से सभी का भला होता। भंगियों की हड़ताल आज के कर्मचारियों की तरह सुविधाएँ बढ़ाने या वेतन बढ़ाने के लिए थी जिससे आम नागरिको को नुकसान छोड़ कर कोई फायदा नहीं था। आज जो हड़ताल या बंद किये जाते हैं चाहे वो राजशाही द्वारा किया गया हो या नौकरशाही द्वारा स्वार्थ के लिए किये जाते हैं, इससे उनका तो भला होता है पर देश का करोड़ो का नुकसान हो जाता है, नागरिकों को नुकसान और असुविधा अलग से होती है। कितनी और कैसी - कैसी परेसनियों से गुजरना पड़ता है आम जनता ही जानती है। कितने रोगियों की मौत हो जाती है, उसकी जिम्मेवारी हम लेते है? अत: हड़ताल और बंद का आह्वान करने वाले देशद्रोही से काम नहीं हैं। अपने लालच के लिए अंग्रेजो का साथ देने वाले सामंतो के सामान हैं। अपनी सुविधाओं और मुनाफे के लिए दूसरों को संकट में डालना कहा तक उचित है?

अभी मेरे क्षेत्र में कर्मचारियों की हड़ताल चल रही है। मैं अनुमंडल कार्यालय गया था, कुछ नवयुवक परेशान दिख रहे थे। मैंने पूछा तो पता चला की उन्हें जाति और निवास प्रमाण पत्र बनवाने थे, सेना में बहाली के लिए हमलोगों का चयन हो गया है। प्रमाण पत्र वैसे भी पैसे खर्च करके ही बनवाने पड़ते हैं हम ज्यादा पैसे देकर भी प्रमाण पत्र चाहते है, हमारे जीवन का, कैरियर का सवाल है। आप बताएं उन लड़कों का जीवन बर्बाद हुआ उसकी जेम्मेवारी क्या कर्मचारी लेंगे? अस्पतालों में डाक्टरों की हड़ताल की वज़ह से मरीज़ मर जाते हैं, क्या डाक्टर उसकी जिम्मेवारी लेते हैं? हड़ताल से देश का करोड़ो का नुकसान होता है क्या उसकी भरपाई आप करेंगी? आज़ादी के लिए किये गए हड़ताल और स्वार्थ के लिए किये जाने वाले हड़ताल में बहुत फर्क है। अत: भंगी हों या उच्च अधिकारी वेतन और सुबिधाओं के लिए हड़ताल करना देशद्रोह है, पाप है, अनुचित है। उन्हें अपनी मांगों के लिए न्यायलय जाना चाहिए या बिरोध करने के लिए बिना काम बंद किये काली पट्टी बांध कर अपने कर्तव्य का भली भाति निर्वाह करते हुए विरोध करना चाहिए ताकि देश का, नागरिकों का, कोई नुकसान न हो। मैं समझता हूँ गाँधी जी का भंगियो के हड़ताल का समर्थन न करने का कारण आपको समझ में आ गया होगा।

इन बातों से स्पस्ट है कि किसी तथ्य की व्याख्या लेखक के विचार पर भी निर्भर करती है।
हर इन्सान से भूल होती है। गाँधी जी से सिर्फ एक भूल हुई थी। उन्होंने १९४७ में कहा था मेरे शरीर का दो टुकड़ा कर दो काट दो तब देश का विभाजन होगा। वे अपनी बात पर कायम न रह सके। नेहरु जी और जिन्ना साहब की पदलोलुपता (क्षमा चाहूँगा, यह कडवा संच है) की वज़ह से देश का विभाजन हुआ। गाँधी जी मौन रह गए। इस वज़ह से लाखो हिन्दू पाकिस्तान छोड़ कर भारत भागे तथा लाखो मुसलमान पाकिस्तान गए. कईयों की जान गयी, दंगे हुए। विभाजन के बाद हुए जान माल के नुकसान को देखते हुए नोवेल कमिटी ने गाँधी जी को नोवेल पुरस्कार नहीं दिया। जो क़ुरबानी उन्होंने १९४८ में दी वह १९४७ में देनी थी । पर उनकी क़ुरबानी मांगने वाले हम कौन होते हैं? उन्होंने हमसे कोई ठेका नहीं लिया था। बाकि नेताओं की तरह आज़ादी के बाद उन्होंने राजगद्दी भी नहीं मांगी।

अब गाँधी जी नहीं रहे वे अपनी गलती सुधारने जन्नत से स्वर्ग से फिर नहीं आ रहे। अब हमारी जिम्मेवारी बनती है की समाज में जो कुछ गलत है, अन्याय है, भेद है, पूर्व में हुई गलती है .... उसे मिटायें, सुधारें । अभी भी हम जर्मनी की तरह फिर से एक हो सकते हैं यदि हम और हमारे नेता धन इक्कठा करना छोड़ कर संच्चे मन से देश और इंसानियत / मानवता के लिए काम करना शुरू कर दें।

क्षमा करियेगा दीपा बहन! गाँधी जी के बारे में आपके विचार उतने ही वीभत्स हैं जितना की भ्रूण हत्या के विरोध में लगाया गया आपका चित्र। चार्स सोभराज, नटवर लाल की तार्किक शक्ति हमलोगों से ज्यादा थी पर उन्होंने उसका इस्तेमाल पोजेटिव वे में नहीं किया अगर किया होता तो वे आज महापुरषों के श्रेणी में होते। आपसे भी आग्रह है की आप अपनी तीक्ष्ण बुद्धि का प्रयोग समाज को सही रास्ता दिखने में करें, मेरी बात का बुरा न माने, अन्यथा न लें, अपमान न समझें। अगर आपको ऐसा लगे तो बताये, मैं अपनी छोटी बहन का पैर पकड़ कर माफ़ी मांगने देहरादून आ जाऊंगा ।

आपका अपना भाई,

ग़ुलाम कुन्दनम,

सिटिज़न ऑफ़ आजाद हिंद देश (पाकिस्तान+भारत+बंगलादेश)





Nitish Kumar's Blog: This is a make or mar election, come out and vote

http://nitishspeaks.blogspot.com/2010/10/this-is-make-or-mar-election-come-out.html

Nitish Kumar's Blog: This is a make or mar election, come out and vote

आपने बिलकुल ठीक कहा है. विकास ही राजनितिक मुद्दा होना चाहिए। पर जब तक अपना लोकतंत्र पार्टी आधारित रहेगा, राजनितिक पार्टियाँ अपना वोट बैंक बनाने के लिए
समाज को जाति - धर्म आदि के नाम पर बाँटती ही रहेंगी। राजनीति जबतक मुनाफे का धंधा रहेगा, भ्रस्टाचारी नेता ही अधिक आते रहेंगे। वर्तमान परिस्थिति में आपसे अच्छा कोई विकल्प नहीं है। मैं आपसे आग्रह करूँगा की जीतने के बाद उपरोक्त सुधारों के लिए कानून बनाने की सोंचें .

- ग़ुलाम कुन्दनम,
अध्यक्ष,
(सर्व धर्म सेवक संघ )
All Religions Servant Society (ARSS)

रेलवे वाले मौसेरे भाई

रेलवे वाले मौसेरे भाई

मैंने घंटों लाइन में लगकर,

सुपर फास्ट का टिकट कटाया।

जैसे ही पुरषोत्तम आई,

भाग, जेनरल बोगी के पास आया,

गेट से लेकर सौचालय तक,

बोरे के आनाज की तरह,

औरत, मर्द, बच्चों को,

भरा पाया।

लाख कोशिश करके भी,

मैं घुंस न पाया।

दूसरी बोगी एकदम,

इंजन के पास थी।

मेरे पीछे पत्नी भी,

भागे भागे पहुंची।

वहाँ तो और बुरा हाल था,

पैदान पर लटकना भी,

मुहाल था।

पत्नी को अस्पताल ले जाना जरुरी था,

सोंचा थोड़ी देर के लिए,

अपना ईमान छोड़ते हैं,

मरता क्या न करता,

चलो कानून तोड़ते हैं।

स्लिप्पर के गेट पे,

दो स्टेशन सफ़र कर लेंगे,

यात्रियों को कोई,

कष्ट न देंगे।

अभी गाड़ी चली ही थी,

की आ गए टीटी भाई।

टिकट देख उन्होंने,

सौ रुपये फरमाई।

मैंने सारी व्यथा सुनाई,

ऐसी सजा मत दीजिये,

जेनरल में खड़े होने की,

जगह दिला दीजिये।

भाई बोले, कानून मत पढ़ाईये,

साढ़े तिन सौ का रसीद कटाईये।

मैंने बीस बीस के दो नोट पकड़ाई,

अब हम बन गए मौसेरे भाई।

उन्होंने टिकट पे कोई कोड बनाया,

बा-ईज्जत उसे मुझे लौटाया।

उनके होठों पे हल्की सी मुस्कान आई,

चल पड़े किसी और को,

बनाने मौसेरा भाई।

अरक्षित सिट पर MST वाले,

आराम से बैठे थे,

आरक्षण वाले सिमट कर,

सहमें बैठे थे।

इनके लिए टीटी भाई साहब ने,

अपना संविधान लिखा है,

मौसेरे भाई का,

सही पहचान दिखा है।

MST वालों के टिकट पे,

पान खिलाना लिखा है।

ट्रेन में बैठे यात्री के,

अख़बार पर नज़र पड़ी,

एक नेता की खबर,

छपी थी बहुत बड़ी।

अब हम भी BPL में आते हैं,

AC के इकोनोमिक क्लास में जाते हैं।

जेनरल बोगी के बेवकुफ्फ़ BPL,

सौचालय में सफ़र करते है।

गरीब चलें या न चलें,

हम AC गरीब रथ तो चलवाते हैं।


उतर कर पत्नी से पूछा,

कवि सम्मेलन के लिए,

आरक्षण हो जाये तो अच्छा।

लाइन में पहले से ही,

बीस-बीस एजेंट लगे थे।

पत्नी बोली चलो ई-टिकट ले लेंगे।

पत्नी का इलाज कराकर,

ट्रेवल एजेंसी पहुंचा।

सारा इन्टरनेट खंघाल मारा,

एक भी सिट न था बचा।

एजेंट बोला कवि महोदय,

क्यों परेसान होते हैं,

आपको हम कल का,

कन्फर्म टिकट देते हैं।

दो सौ रूपये कोटेदार का होगा,

दो सौ रुपये बड़ा बाबु ले जायेंगे,

बाकि दो सौ में मेरे स्टाफ,

सारे बाँट कर खायेंगे।

अब समझ में आया,

रेलवे की तरह नेता और बाबु का भी बज़ट,

भारी-भरकम होता है,

तभी तो रेल मंत्रालय के लिए,

मारा – मारी होता है।

-GK,

Citizen of Azad Hind Desh (PK+IN+BD).

Tuesday, September 14, 2010

maut ki khabar sunne aur sunane walon ka man kab bharega, aur kitani mauten roj chahte hain o. we bhaichare ki, raham ki, mohhabbat ki khabar bhi suna payenge?

मौत की खबर सुनने और सुनाने वालों का मन कब भरेगा, और कितनी मौतें रोज चाहते हैं वो. वे भाईचारे की, रहम की, मोह्हब्बत की खबर भी सुना पाएंगे?

Allah! I am very sorry on every death of Militant, Military and all other innocent citizen of Kashmir (Pandit, Muslim and others). When we think for solution? However, the solution is already @ "Kashmir Solution" page.
-GK,
Citizen of Azad Hind Desh (PK+IN+BD)



भाषा - विज्ञान

हमें भाषा - विज्ञान नामक विषय विद्यालयों में प्रारंभ करना चाहिए। अन्य भारतीय भाषाओँ, अंग्रेजी , अरबी, उर्दू आदि के साथ साथ हिंदी का तुलनात्मक अध्ययन कराया जाये ताकि भाषा संबंधी भेद- भाव तथा वार्तालाप संबंधी समस्या का समाधान हो सके।
- ग़ुलाम कुन्दनम,
सिटिज़न ऑफ़ आजाद हिंद देश (पाकिस्तान + भारत + बंगलादेश)

Friday, September 10, 2010

तीज और ईद मुबारक.Teez aur Eid Mubarak

१८५७ में हम संग-संग,

खेले थे होली,

अकबर के घर गयी थी,

जोधा बाई की डोली.

बेटीरोटी का रिश्ता,

ज़माने से चला है,

संजय की ममतामयी छाव,

नर्गिस का रहा है.

राम-रहीम, कृष्ण-करीम,

सब एक ही तो हैं,

ये मैं नहीं कहता,

वहदत अल-वुजूद अजमेर--शरीफ ने कहा है.

हर साल मिलकर ही हम,

सब ने ईद मनाई थी,

गाँधीगफ्फार ने सांथ-

सांथ ही सेवई खाई थी.

खुदा ने खास जोड़ी,

लगायी है अजीब,

दरिया दिल है यहाँ की,

गंगा-जमुना तहजीब,

मजहब और अलगाव के,

ठेकेदारों के हम मारे,

उनके दिए घावों से भी,

गहरे दिल की रिश्ते हमारे.

सभी भाई बहनों को,

ईद मुबारक.

सनातन धर्मी बहनों को,

तीज मुबारक


1857 me ham sang-sang,

khele the holi,

Akbar ke ghar gayi thi,

Jodha Bai ki doli.

Beti – Roti ka rista,

jamane se chala hai,

Sanjay ki mamtamayi chhav,

Nargis ka raha hai.

Ram-Rahim, Krishna-Karim,

sab ek hi to hain,

ye main nahi kahta,

Wahdat al-Wujud Ajmer-e-Sharif ne kaha hai.

Har sal milkar hi ham,

sab ne eid manayi thi,

Gandhi – Gaffar ne santh-

santh hi sevai khai thi.

Khuda ne khas jodi,

lagayi hai ajeeb,

Daria dil hai yahan ki,

Ganga-Jamuna Tahjib,

Majhab aur algav ke,

Thekedaron ke ham mare,

Unke diye ghavon Se bhi,

gahre dil ki riste hamare.

Sabhi bhai bahano ko,

Eid mubark.

Sanatan dharmi bahno ko,

Teez mubarak.

-GK,

Citizen of Azad Hind Desh

(Pakistan+India+Bangladesh)