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Friday, September 17, 2010

रेलवे वाले मौसेरे भाई

रेलवे वाले मौसेरे भाई

मैंने घंटों लाइन में लगकर,

सुपर फास्ट का टिकट कटाया।

जैसे ही पुरषोत्तम आई,

भाग, जेनरल बोगी के पास आया,

गेट से लेकर सौचालय तक,

बोरे के आनाज की तरह,

औरत, मर्द, बच्चों को,

भरा पाया।

लाख कोशिश करके भी,

मैं घुंस न पाया।

दूसरी बोगी एकदम,

इंजन के पास थी।

मेरे पीछे पत्नी भी,

भागे भागे पहुंची।

वहाँ तो और बुरा हाल था,

पैदान पर लटकना भी,

मुहाल था।

पत्नी को अस्पताल ले जाना जरुरी था,

सोंचा थोड़ी देर के लिए,

अपना ईमान छोड़ते हैं,

मरता क्या न करता,

चलो कानून तोड़ते हैं।

स्लिप्पर के गेट पे,

दो स्टेशन सफ़र कर लेंगे,

यात्रियों को कोई,

कष्ट न देंगे।

अभी गाड़ी चली ही थी,

की आ गए टीटी भाई।

टिकट देख उन्होंने,

सौ रुपये फरमाई।

मैंने सारी व्यथा सुनाई,

ऐसी सजा मत दीजिये,

जेनरल में खड़े होने की,

जगह दिला दीजिये।

भाई बोले, कानून मत पढ़ाईये,

साढ़े तिन सौ का रसीद कटाईये।

मैंने बीस बीस के दो नोट पकड़ाई,

अब हम बन गए मौसेरे भाई।

उन्होंने टिकट पे कोई कोड बनाया,

बा-ईज्जत उसे मुझे लौटाया।

उनके होठों पे हल्की सी मुस्कान आई,

चल पड़े किसी और को,

बनाने मौसेरा भाई।

अरक्षित सिट पर MST वाले,

आराम से बैठे थे,

आरक्षण वाले सिमट कर,

सहमें बैठे थे।

इनके लिए टीटी भाई साहब ने,

अपना संविधान लिखा है,

मौसेरे भाई का,

सही पहचान दिखा है।

MST वालों के टिकट पे,

पान खिलाना लिखा है।

ट्रेन में बैठे यात्री के,

अख़बार पर नज़र पड़ी,

एक नेता की खबर,

छपी थी बहुत बड़ी।

अब हम भी BPL में आते हैं,

AC के इकोनोमिक क्लास में जाते हैं।

जेनरल बोगी के बेवकुफ्फ़ BPL,

सौचालय में सफ़र करते है।

गरीब चलें या न चलें,

हम AC गरीब रथ तो चलवाते हैं।


उतर कर पत्नी से पूछा,

कवि सम्मेलन के लिए,

आरक्षण हो जाये तो अच्छा।

लाइन में पहले से ही,

बीस-बीस एजेंट लगे थे।

पत्नी बोली चलो ई-टिकट ले लेंगे।

पत्नी का इलाज कराकर,

ट्रेवल एजेंसी पहुंचा।

सारा इन्टरनेट खंघाल मारा,

एक भी सिट न था बचा।

एजेंट बोला कवि महोदय,

क्यों परेसान होते हैं,

आपको हम कल का,

कन्फर्म टिकट देते हैं।

दो सौ रूपये कोटेदार का होगा,

दो सौ रुपये बड़ा बाबु ले जायेंगे,

बाकि दो सौ में मेरे स्टाफ,

सारे बाँट कर खायेंगे।

अब समझ में आया,

रेलवे की तरह नेता और बाबु का भी बज़ट,

भारी-भरकम होता है,

तभी तो रेल मंत्रालय के लिए,

मारा – मारी होता है।

-GK,

Citizen of Azad Hind Desh (PK+IN+BD).

1 comment:

  1. nice satire!
    wonderful expression of the stark realities that we face in day to day life....
    regards,

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