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A citizen of a new big country Azad Hind Desh (India + Pakistan + Bangladesh).

Wednesday, October 27, 2010

मैं एक संभ्रांत बाप हूँ,

सुबह ही मैंने दुर्गा को,

धुप बती दिखाई थी,

दोपहर में कन्यायों को,

उत्तम भोज कराई थी,

शाम को भी मैं एक,

बड़ा ही नेक काम किया ,

घर आने वाली जगदम्बा को,

गर्भ से सीधे स्वर्ग दिया।


मेरी एक बेटी अमीना थी,

नाबालिक भोली भाली नगीना थी,

मैंने सरियत का सम्मान किया,

अरबी शेख के हाथो बेच दीया.

हर बेटी की तरह वह भी रोई थी,

टॉफी लेकर सोई थी।


एक बेटी दसवीं कक्षा में,

देश भर में अव्वल आई है,

मेरे कहने पर ही उसने,

कॉलेज न जाने की कसम खाई है.

राम-रहीम की कृपा से,

कमाल की अकल पाई है,

मैंने उसकी अकल को,

बर्तन पे घिसवाई है।


एक बेटी जिद पर अड्ड गयी,

कुछ ज्यादा ही पढ़ गयी,

पढ़ा – लिखा विजातीय काला,

कर लिया उससे शादी साला,

घर आते ही मैंने इनाम दिया,

दिन-दहाड़े कत्लेयाम किया।


मेरा प्यारा बुद्धू बेटा,

अमरीका से फेल होकर लौटा.

अमरीका के नाम पर मैंने,

खूब दहेज़ कमाई है.

बेटी समान एक सुन्दर,

नौकर सी दुल्हन पाई है।


उमस भरी गर्मी में भी,

ओढ़े नाक़ाब पडोसी आई है.

मैंने भी अपनी बहु को,

घुटनों तक घूँघट करवाई है.

आक्सीजन तो सिर्फ मुझे चाहिए,

उनके लिए कार्बन डाई ऑक्साइड है.

मेरे कहने – लिखने से ही ऐसा,

शास्त्र, सरियत ने बतलाई है।


एक बेटी की मैंने,

काफी दूर की सगाई है,

बाप बेटा दोनों शराबी,

बेटी की चिट्ठी आई है,

दहेज़ के लिए उसकी,

खूब हुई पिटाई है.

पड़ोस की बेटी का सौहर,

रोज तलाक से डरवाता है,

मेरी इज्जत के खातिर बेटी को,

सात-जनम घुट कर जीना आता है।


बेटी की पढाई में नहीं,

पर सगाई में सब बेच दिया,

निट्ठल्ला बैठा बाप मैं,

अपना ईमान भी अब बेच दिया.

बेटी को उठा कोठे पे दे आया,

बैठे बैठे मैं भोजन पाया.

बड़े खानदान से आता हूँ,

बेटियों को कंचा खाता हूँ

मैं एक संभ्रांत बाप हूँ,

बहु बेटियों के लिए शाप हूँ.


1 comment:

  1. शुरू से अंत तक एक साँस में पढ़ी यह कविता| फिर दोबार और फिर तीसरी बार| यकीन मानें हर बार रोंगटे खड़े हुए| वाकई, कितनी खोखली बातों को समर्पित है हमारा समाज और हमारे व्यवहार| फिर भी, रास्ता तो इसी में से तलाशना होगा| उम्मीद की किरण कहीं न कहीं कभी न कभी तो ज़रूर दिखलाई पड़ेगी|
    हमारी बेटियाँ अब शायद वैसी नहीं हैं, अब वो सब कुछ पा रही हैं| और जो अब तक इस से दूर हैं, बहुत जल्द ही वो भी अच्छे लोगों के समाज में आने को हैं| तमाम नकारात्मक बातों के बावजूद काफ़ी कुछ अच्छा भी हो रहा है| आपका लिखना निरर्थक नहीं है, परंतु वह सब कुछ भी नहीं है|

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